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सोमवार, अक्तूबर 31, 2011

"सच" का साथ मेरा कर्म व "इंसानियत" मेरा धर्म-2


प्रिंट व इलेक्ट्रोनिक्स मीडिया को आईना दिखाती एक पोस्ट

   आज की पोस्ट के शीर्षक के अनुरूप ही एक पोस्ट यहाँ पर इस "क्या हमारी मीडिया भटक गयी है ?" शीर्षक से प्रकाशित हुई है. जो ब्लॉग जगत के लिए एक विचारणीय भी है और कुछ करके दिखाने के योग्य भी है. इस ब्लॉग की संचालक डॉ.दिव्या श्रीवास्तव जी  के लेखन का ही जादू है. जो उनकी एक पोस्ट पर 510 टिप्पणियाँ तक प्राप्त होती है. जिन्हें अधिक्तर लोग 'ZEAL' के नाम से जानते हैं. इनकी पोस्ट को पढकर मेरी दबी हुई आंकाक्षा उबल खा गई. तब मैंने अपनी बात भी वहाँ टिप्पणी के रूप में चिपका दी और शायद उसके कारण मेरा ब्लॉग जगत पर आने का उद्देश्य भी पूरा हो सकता है. इनकी अनेकों पोस्टें विचार योग्य है और कुछ सोचने के लिए मजबूर कर देती है. इसके गुलदस्ते का एक फुल कहूँ या पोस्ट यह भी है. जिसका शीर्षक 'ZEAL' ब्लॉग का उद्देश्य - [शब्दों में ढले जिंदगी के अनुभव] यह है.  आप यहाँ जरुर जाएँ और जैसे अपने भगवान के घर में जाकर हाजिरी लगते हैं. वहाँ पर भी हाजिरी जरुर लगाकर आये और भाई डॉ अनवर जमाल खान साहब को ईमेल करके या यहाँ पर टिप्पणी करके जरुर बताये कि-इस नाचीज़ 'सिरफिरा-आजाद पंछी' को पिंजरे से आजाद करके कहूँ या भरोसा करके क्या कोई जुर्म किया है? 

अब थोड़ा चलते-चलते फिर आपका सिर-फिरा दूँ. ऐसा कैसे हो सकता है शुरू में फिराया है और लास्ट मैं ना फिरारूं तो मेरे नाम की सार्थकता खत्म नहीं हो जायेगी. 
 1. मैं पूरे ब्लॉग जगत से पूछता हूँ कि-क्या पूरा ब्लॉग जगत मैं यहाँ चलती आ रही गुटबाजी को खत्म करने के लिये कोई कार्य करना चाहेंगा या चाहता है? अगर इस बीमारी पर जल्दी से जल्दी काबू नहीं किया गया तब ब्लॉग जगत अपनी पहचान जल्दी ही खत्म कर देगा. अपने उपरोक्त विचार मेरी ईमेल (हिंदी में भेजे)  sirfiraark@gmail.com  पर भेजे. क्या मुस्लिम कहूँ मुसलमान सच नहीं लिख सकता हैं? क्या आप उसका सिर्फ उसके धर्म और जाति के कारण वहिष्कार करेंगे. आखिर क्यों हम हिंदू-मुस्लिम, सिख-ईसाई में बाँट रहे हैं? एक इंसान का सबसे बड़ा धर्म "इंसानियत" का नहीं होता है. इससे हम क्यों दूर होते जा रहे हैं?
2. अगर हिंदी ब्लॉग जगत के सभी ब्लोग्गर अपने एक-एक ब्लॉग को एक अच्छी "मीडिया-कलम के सच्चे सिपाही" के रूप में स्थापित करने को तैयार हो तो मैं 200 ब्लोग्गरों की यहाँ sirfiraark@gamil.com पर ईमेल(हिंदी में भेजे) आने पर उसके सारे नियम और शर्तों को बनाकर अपना पूरा जीवन उसको समर्पित करने के लिये तैयार हूँ. 
                     मैं आज सिर्फ अपनी पत्नी के डाले फर्जी केसों से परेशान हूँ. जिससे मेरे ब्लोगों को पढकर थोड़ी-सी मेरी पीड़ा को समझा जा सकता है. हर पत्रकार पैसों का भूखा नहीं होता, शायद कोई-कोई मेरी तरह कोई "सिरफिरा" देश व समाज की "सच्ची सेवा" का भी भूखा होता हैं, बस ब्लॉग जगत पर मेरी ऐसे पत्रकारों की तलाश है. यहाँ ब्लॉग जगत पर 1000-2000 शब्दों का लेख लिखकर या किसी ब्लॉग पर 15-20 वाक्यों की टिप्पणी करके सिर्फ चिंता करना जानते हो? 
                  मेरी माँ, बहन और बेटी के समान और मेरे पिता, भाई और बेटे के समान ब्लोग्गरों यह "सिरफिरा" आपको कह रहा है कि-"गुड मोर्निंग. जागो! सुबह हो गई" और "आप आये हो, एक दिन लौटना भी होगा.फिर क्यों नहीं? तुम ऐसा करों तुम्हारे अच्छे कर्मों के कारण तुम्हें पूरी दुनियां हमेशा याद रखें.धन-दौलत कमाना कोई बड़ी बात नहीं, पुण्य/कर्म कमाना ही बड़ी बात है. हमारे देश के स्वार्थी नेता "राज-करने की नीति से कार्य करते हैं" और मेरी विचारधारा में "राजनीति" सेवा करने का मंच है" मुझे तुम्हारे साथ और लेखनी कहूँ या कम्प्यूटर के किबोर्ड पर चलने वाली वाली दस उंगुलियों की जरूरत है. तुम्हारा और मेरा सपना "समृध्द भारत" पूरा ना हो तब कहना कि-सिरफिरा तूने जो कहा था, वो नहीं हुआ. थोड़े नियम और शर्तें कठोर है. मगर किसी दिन भूखे सोने की नौबत नहीं आएगी. अगर ऐसा कभी हो तो मुझे सूचित कर देना. अपने हिस्से का भोजन आपको दे दूँगा. मुझे अपने जैन धर्म के मिले संस्कारों के कारण भूखा रहने की सहनशीलता कहूँ या ताकत प्राप्त है. एक बार मेरी तरफ कदम बढाकर तो देखो. किसी पीड़ा से दुखी नहीं होंगे और किसी सुख से वंचित नहीं होंगे. यह "सिरफिरा" का वादा है आपसे. 


     बोर कर देने वाली इतनी लंबी पोस्ट के लिए क्षमा कर देना. आपसे वादा रहा अगली पोस्ट इतना बोर नहीं करूँगा. पहली पोस्ट है ना और अनाड़ी भी हूँ.
 दोस्तों, मैं शोषण की भट्टी में खुद को झोंककर समाचार प्राप्त करने के लिए जलता हूँ फिर उस पर अपने लिए और दूसरों के लिए महरम लगाने का एक बकवास से कार्य को लेखनी से अंजाम देता हूँ. आपका यह नाचीज़ दोस्त समाजहित में लेखन का कार्य करता है और कभी-कभी लेख की सच्चाई के लिए रंग-रूप बदलकर अनुभव प्राप्त करना पड़ता है. तब जाकर लेख का विषय पूरा होता है. इसलिए पत्रकारों के लिए कहा जाता है कि-रोज पैदा होते हैं और रोज मरते हैं. बाकी आप अंपने विचारों से हमारे मस्तिक में ज्ञानरुपी ज्योत का प्रकाश करें. 

एक बार मेरी orkut और facebook प्रोफाइल देख लें, उसमें लिखी सच्चाई की जांच करें-फिर हमसे सच्ची दोस्ती करने की खता करें. मुझे उम्मीद है धोखेबाजों की दुनियां में आप एक अच्छा दोस्त का साथ पायेगें और निराश नहीं होंगे.
उपरोक्त लेख पर आई टिप्पणियाँ पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें.
नोट:-यह पोस्ट "ब्लॉग की खबरें" के लिए लिखी गई थी, जो वहां पर 20 जुलाई को प्रकाशित हो चुकी है. ब्लॉग जगत पर बड़ी-बड़ी बातें लिखने और कहने वाले किसी भी ब्लॉगर की आज तक कोई भी ईमेल नहीं आई हैं. इसे ही कहते हैं कि कथनी और करनी में फर्क.

शनिवार, अक्तूबर 29, 2011

"सच" का साथ मेरा कर्म व "इंसानियत" मेरा धर्म


प्रिंट व इलेक्ट्रोनिक्स मीडिया को आईना दिखाती एक पोस्ट

मेरे दोस्तों/ शुभचिंतकों/आलोचकों - मुझे इस ब्लॉग "ब्लॉग की खबरें" के संचालक कहूँ या कर्त्ताधर्त्ता भाई डॉ अनवर जमाल खान साहब ने मुझ नाचीज़ "सिरफिरा" को मान-सम्मान दिया हैं. उसका मैं तहे दिल से शुक्र गुजार हूँ. मेरे लिये यहाँ# ब्लॉग जगत में न कोई हिंदू है, न कोई मुस्लिम है, न कोई सिख और न कोई ईसाई है. मेरे लिये "सच" लिखना और "सच" का साथ देना मेरा कर्म है और "इंसानियत" मेरा धर्म है. चांदी से बने कागज के चंद टुकड़े मेरे लिये बेमानी है या कहूँ कि -भोजन के लिए जीवन नहीं किन्तु जीवन के लिए भोजन है. धन के लिए जीवन नहीं किन्तु जीवन के लिए धन है. तब कोई अतिसोक्ति नहीं होगी.

     भाई डॉ अनवर जमाल खान साहब ने मुझे सारी शर्तों व नियमों से पहले अवगत करके मुझे आप लोगों की सेवा करने का मौका दिया है. मैं अपने कुछ निजी कारणों से आपकी फ़िलहाल ज्यादा सेवा नहीं पाऊं. लेकिन जब-जब आपकी सेवा करूँगा. पूरे तन और मन से करूँगा. किसी ब्लॉग की या मंच की नियम व शर्तों में पारदशिता(खुलापन) बहुत जरुरी है. अगर आप यह नहीं कर सकते तब आप ब्लॉग या मंच के पाठकों से और उसके सहयोगियों से धोखा कर रहे हो. भाई खान साहब ने मेरी निजी समस्याओं पर चिंता व्यक्त करते हुए और उन्हें हल करने में मेरी व्यवस्ताओं को देखते हुए कहा कि -आपकी शैली मुझे पसंद है। आप ब्लॉग जगत की सूचना और पत्रकारिता के लिए आमंत्रित किए गए हैं ‘ब्लॉग की ख़बरें‘ की ओर से। आप ब्लॉग जगत से जुड़ी कोई भी तथ्यपरक बात कहने के लिए आज़ाद हैं। आइये और हिंदी ब्लॉग जगत को पाक साफ़ रखने में मदद कीजिए। ‘ब्लॉग की ख़बरें‘ का संपादक मैं ही हूं। आप इसके एक ज़िम्मेदार पत्रकार हैं। आप मुझे दिखाए बिना जब चाहे कुछ भी यहां छाप सकते हैं। यह मंच किसी के साथ नहीं है और न ही किसी के खि़लाफ़ है। यह केवल सत्य का पक्षधर है। हरेक विचारधारा का आदमी यहां ब्लॉग जगत में हो रही हलचल को प्रकाशित कर सकता है। आप अपनी समस्याओं के चलते एक भी पोस्ट न प्रकाशित करें. मगर आपकी नेक नियति का मैं कायल हूँ. इसलिए आप हमें यथा संभव योगदान दें. मुझे आपकी पोस्ट का बेसब्री से इन्तजार रहेगा.

    मेरे दोस्तों/ शुभचिंतकों/आलोचकों-जब किसी तुच्छ से "सिरफिरा" को इतना मान-सम्मान दें और अपने ब्लॉग या मंच के उद्देश्यों से अवगत कराने के साथ ही अपने ब्लॉग भाई की निजी समस्याओं का "निजी खबरे या बड़ा ब्लोग्गर" कहकर मजाक ना बनाये. बल्कि उन्हें हल करने के लिये अपनी तरफ से किसी प्रकार की मदद करने के लिये कदम बढ़ाता है. तब ऐसे ब्लॉग या मंच से "सिरफिरा" तन और मन से न जुडे. ऐसा कैसे हो सकता है.  

    मेरे दोस्तों/ शुभचिंतकों/आलोचकों- आज मेरी पहली पोस्ट में कोई भी गलती हो गई हो तब पूरी निडरता से आलोचना करें. कृपया प्रशंसा नहीं. मेरी आलोचना करें. मैं यहाँ पर आलोचकों को प्राथमिकता दूँगा. मेरी प्रशंसा के लिए मेरे ब्लोगों की संख्या दस है. वहाँ अपनी पूर्ति करें. मैंने भाई खान साहब से जल्द ही एक पोस्ट डालने का वादा किया था. उस "कथनी" के लिए आपके सामने एक पोस्ट लेकर आया हूँ. किसी प्रकार की अनजाने में हुई गलती को "दूध पीता बच्चा" समझकर माफ कर देना. 

    बस अपनी बात यहाँ ही खत्म करता हूँ. फिर शेष तब .......जब चार यार(दोस्त, शुभचिंतक, आलोचक और तुच्छ "सिरफिरा") बैठेंगे.
     अब आप इन्तजार करें मेरी यहाँ अगली पोस्ट का जिसका उपशीर्षक (मैं हिंदू हूँ , मैं मुस्लिम हूँ  और मैं सिख-ईसाई भी हूँ) और प्रमुख्य शीर्षक "मेरा कोई दिन-मान नहीं है" इस पोस्ट से संबंधित क़ानूनी और तकनीकी जानकारी प्राप्त होने पर ही प्रकाशित होगी. इस पर शोध कार्य चल रहे हैं. थोड़ा सब्र करें.

    अरे ! मेरे दोस्तों/ शुभचिंतकों/आलोचकों मैंने आपको कहाँ उलझा दिया? अपनी बातों में आप कभी भी "सिरफिरा" की बातों में न आया करें. इसकी बातों में आकर आपका भी "सिर" फिर जायेगा. देखा लिया न नमूना. अब इस पोस्ट के उपशीर्षक कहूँ या विषय पर आपको नहीं लेकर गया हूँ. जरा सब्र करो भाई! सब्र का फल मीठा ही मिलता है. अब चलें भी आइये मेरे हजूर, मेरे महबूब. कहीं देर ना हो जाए और सिरफिरा का दम निकल जाए. (क्रमश:)
#नोट:-यह पोस्ट "ब्लॉग की खबरें" के लिए लिखी गई थी, जो वहां पर प्रकाशित हो चुकी है.

मंगलवार, अक्तूबर 18, 2011

"सिरफिरा-आजाद पंछी" नवभारत टाइम्स पर भी

नवभारत टाइम्स पर पत्रकार रमेश कुमार जैन का ब्लॉग क्लिक करके देखें "सिरफिरा-आजाद पंछी" (प्रचार सामग्री)
क्या पत्रकार केवल समाचार बेचने वाला है? नहीं.वह सिर भी बेचता है और संघर्ष भी करता है.उसके जिम्मे कर्त्तव्य लगाया गया है कि-वह अत्याचारी के अत्याचारों के विरुध्द आवाज उठाये.एक सच्चे और ईमानदार पत्रकार का कर्त्तव्य हैं,प्रजा के दुःख दूर करना,सरकार के अन्याय के विरुध्द आवाज उठाना,उसे सही परामर्श देना और वह न माने तो उसके विरुध्द संघर्ष करना. वह यह कर्त्तव्य नहीं निभाता है तो वह भी आम दुकानों की तरह एक दुकान है किसी ने सब्जी बेचली और किसी ने खबर.        
अगर आपके पास समय हो तो नवभारत टाइम्स पर निर्मित हमारे ब्लॉग पर अब तक प्रकाशित निम्नलिखित पोस्टों की लिंक को क्लिक करके पढ़ें. अगर टिप्पणी का समय न हो तो वहां पर वोट जरुर दें.  
हमसे क्लिक करके मिलिए : गूगल, ऑरकुट और फेसबुक पर
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9. आलोचना करने पर ईनाम?
10. जब पड़ जाए दिल का दौरा!

15. "शकुन्तला प्रेस" का व्यक्तिगत "पुस्तकालय" क्यों?
16. आओ दोस्तों हिन्दी-हिन्दी का खेल खेलें
17. हिंदी की टाइपिंग कैसे करें?
18. हिंदी में ईमेल कैसे भेजें
18. आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें
19. अपना ब्लॉग क्यों और कैसे बनाये
20. क्या मैंने कोई अपराध किया है?

22. इस समूह में आपका स्वागत है
23. एक हिंदी प्रेमी की नाराजगी
24. भगवान महावीर की शरण में हूँ
25. क्या यह निजी प्रचार का विज्ञापन है?
26. आप भी अपने मित्रों को बधाई भेजें
27. हमें अपना फर्ज निभाना है
28. क्या ब्लॉगर मेरी मदद कर सकते हैं ?
29. कटोरा और भीख
30. भारत माता फिर मांग रही क़ुर्बानी

31. कैसा होता है जैन जीवन
32. मेरा बिना पानी पिए का उपवास क्यों?
33. दोस्ती को बदनाम करती लड़कियों से सावधान
34. शायरों की महफिल से

35. क्या है हिंसा की परिभाषा ? 
36. "सच" का साथ मेरा कर्म व "इंसानियत" मेरा धर्म 
37. "सच" का साथ मेरा कर्म व "इंसानियत" मेरा धर्म है-2 
 38. शुभदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ !
 39. नाम के लिए कुर्सी का कोई फायदा नहीं
40. आप दुआ करें- मेरी तपस्या पूरी हो
41. मुझे 'सिरफिरा' सम्पादक मिल गया 
42. मेरी लम्बी जुल्फों का अब "नाई" मलिक 
43. दुनिया की हकीक़त देखकर उसका सिर-फिर गया  
44.कोशिश करें-ब्लाग भी "मीडिया" बन सकता है 
45.मेरी शिकायत उनकी ईमानदारी पर प्रश्नचिन्ह
47. कौन होता है आदर्श जैन?
48. अनमोल वचन-दो  
49. भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने पर...
 50. सिरफिरा पर विश्वास रखें 
51. अनमोल वचन-तीन 
52. मद का प्याला -"अहंकार" 
53. अनमोल वचन-चार 
54. मैं देशप्रेम में "सिरफिरा" था, हूँ और रहूँगा 
55. जन्म, मृत्यु और विवाह 
56. दिल्ली पुलिस में सुधार करें

 57. नेत्रदान करें, दूसरों को भी प्रेरित करें.
58. अभियान-सच्चे दोस्त बनो
59. दोस्ती की डोर बड़ी नाजुक होती है
60. फ्रेंड्स क्लब-दोस्ती कम,अश्लीलता ज्यादा

   क्लिक करें, ब्लॉग पढ़ें :-मेरा-नवभारत टाइम्स पर ब्लॉग,   "सिरफिरा-आजाद पंछी", "रमेश कुमार सिरफिरा", सच्चा दोस्त, आपकी शायरी, मुबारकबाद, आपको मुबारक हो, शकुन्तला प्रेस ऑफ इंडिया प्रकाशन, सच का सामना(आत्मकथा), तीर्थंकर महावीर स्वामी जी, शकुन्तला प्रेस का पुस्तकालय और (जिनपर कार्य चल रहा है) शकुन्तला महिला कल्याण कोष, मानव सेवा एकता मंच एवं  चुनाव चिन्ह पर आधरित कैमरा-तीसरी आँख

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मार्मिक अपील-सिर्फ एक फ़ोन की !

मैं इतना बड़ा पत्रकार तो नहीं हूँ मगर 15 साल की पत्रकारिता में मेरी ईमानदारी ही मेरी पूंजी है.आज ईमानदारी की सजा भी भुगत रहा हूँ.पैसों के पीछे भागती दुनिया में अब तक कलम का कोई सच्चा सिपाही नहीं मिला है.अगर संभव हो तो मेरा केस ईमानदारी से इंसानियत के नाते पढ़कर मेरी कोई मदद करें.पत्रकारों, वकीलों,पुलिस अधिकारीयों और जजों के रूखे व्यवहार से बहुत निराश हूँ.मेरे पास चाँदी के सिक्के नहीं है.मैंने कभी मात्र कागज के चंद टुकड़ों के लिए अपना ईमान व ज़मीर का सौदा नहीं किया.पत्रकारिता का एक अच्छा उद्देश्य था.15 साल की पत्रकारिता में ईमानदारी पर कभी कोई अंगुली नहीं उठी.लेकिन जब कोई अंगुली उठी तो दूषित मानसिकता वाली पत्नी ने उठाई.हमारे देश में महिलाओं के हितों बनाये कानून के दुरपयोग ने मुझे बिलकुल तोड़ दिया है.अब चारों से निराश हो चूका हूँ.आत्महत्या के सिवाए कोई चारा नजर नहीं आता है.प्लीज अगर कोई मदद कर सकते है तो जरुर करने की कोशिश करें...........आपका अहसानमंद रहूँगा. फाँसी का फंदा तैयार है, बस मौत का समय नहीं आया है. तलाश है कलम के सच्चे सिपाहियों की और ईमानदार सरकारी अधिकारीयों (जिनमें इंसानियत बची हो) की. विचार कीजियेगा:मृत पत्रकार पर तो कोई भी लेखनी चला सकता है.उसकी याद में या इंसाफ की पुकार के लिए कैंडल मार्च निकाल सकता है.घड़ियाली आंसू कोई भी बहा सकता है.क्या हमने कभी किसी जीवित पत्रकार की मदद की है,जब वो बगैर कसूर किये ही मुसीबत में हों?क्या तब भी हम पैसे लेकर ही अपने समाचार पत्र में खबर प्रकाशित करेंगे?अगर आपने अपना ज़मीर व ईमान नहीं बेचा हो, कलम को कोठे की वेश्या नहीं बनाया हो,कलम के उद्देश्य से वाफिक है और कलम से एक जान बचाने का पुण्य करना हो.तब आप इंसानियत के नाते बिंदापुर थानाध्यक्ष-ऋषिदेव(अब कार्यभार अतिरिक्त थानाध्यक्ष प्यारेलाल:09650254531) व सबइंस्पेक्टर-जितेद्र:9868921169 से मेरी शिकायत का डायरी नं.LC-2399/SHO-BP/दिनांक14-09-2010 और LC-2400/SHO-BP/दिनांक14-09-2010 आदि का जिक्र करते हुए केस की प्रगति की जानकारी हेतु एक फ़ोन जरुर कर दें.किसी प्रकार की अतिरिक्त जानकारी हेतु मुझे ईमेल या फ़ोन करें.धन्यबाद! आपका अपना रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा"

क्या आप कॉमनवेल्थ खेलों की वजह से अपने कर्त्यवों को पूरा नहीं करेंगे? कॉमनवेल्थ खेलों की वजह से अधिकारियों को स्टेडियम जाना पड़ता है और थाने में सी.डी सुनने की सुविधा नहीं हैं तो क्या FIR दर्ज नहीं होगी? एक शिकायत पर जांच करने में कितना समय लगता है/लगेगा? चौबीस दिन होने के बाद भी जांच नहीं हुई तो कितने दिन बाद जांच होगी?



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